26 October 2013 | By: Writing Buddha

मैं आया नहीं, बुलाया गया हूँ by Sanjeet Pathak (Poem)!!!

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   This blog is written by one of my friend- Sanjeet Pathak who recently posted a Hindi translation of my 892nd Blog Post. He wanted to introduce himself here so here it is and then his poem below the introduction-

जन्म से शिक्षार्थी, शौक से इथिकल हैकर और पेशे से वेब डिज़ाइनर. कुछ ऐसे हीं संजीत खुद को परिभाषित करते हैं. रांची विश्वविद्यालय से BCA और नेशनल एंटी हैकिंग ग्रुप से इथिकल हैकिंग कर चुके संजीत को कंप्यूटर में असीम रूचि है. संजीत के अनुसार, उन्होंने आज-तक लिखने और पढने के अलावा और कोई तीसरा काम नहीं किया. पढ़ते हैं सब कुछ जो भी पढने को मिल जाए, और लिखते है, जिसे आज तक किसी ने नहीं पढ़ा. संजीत के लिखे ये शब्द, ARB पर आपके लिए :



मैं आया नहीं, बुलाया गया हूँ.
इन्कलाब नहीं हूँ, जलाया गया हूँ.
यूँ ही नहीं बैठा इस मरघट में....
हजारों दफा दफनाया गया हूँ.


झुलाया गया हूँ, झुकाया गया हूँ.
नहीं थी जरुरत, तो मिटाया गया हूँ.
हुआ फक्र मुझ पर तो महफ़िल में परोसा,
जो आई हया तो छुपाया गया हूँ.


जो चाहा सिमटना साए में खुद के,
तो उसी के पीछे दौड़ाया गया हूँ.
कभी था चाहा सिसक कर जो रोना,
तभी गुदगुदा कर हँसाया गया हूँ.


गर माँगा हिसाब कभी मेरी खता का,
हजारों हीलों से बरगलाया गया हूँ.
जिनको कभी था पलकों पर रखा,
उन्ही द्वारा शूलों पर बिठाया गया हूँ.


मैं मूरत के मंदिर में बंधी हुई घंटी,
हर-एक हाथो से बजाया गया हूँ.
मेरे बजने से ये पत्थर हैं रीझते,
यही बोल कर मैं रिझाया गया हूँ.

Thanks. Sanjeet!

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