24 May 2014 | By: Writing Buddha

An Open Letter to Arvind Kejriwal by Ritesh Rangare (Guest Post)!!!

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Ritesh Rangare studied at NIT Calicut. Ritesh belongs to a middle class family from a small town Seoni, Madhya Pradesh. He doesn't like reading novels much, but still he wrote this novel in the last days of college at the age of 22 along with his friend, Harshal. At present, Ritesh is working in a same company as Marketing Manager and Business Development Manager.

FOREWORD BY RITESH RANGARE:-
चुनाव में बहुत सारे लोग कुछ पार्टियों से दिल से जुड गए थे, ऐसे में “आम आदमी” जैसी पार्टी जितनी तेजी से आगे बढ़ी उतनी ही तेजी से जमीन पर वापस आ गयी मुझ जैसे काफी लोगो को ये बुरा लगा उनकी भावनाओ को राजनीति से जोड़ कर उसका गलत फायेदा उठाया गया | मैं केजरीवाल सर तक ये बात पहुचना चाहता हू और ARB (Abhilash Ruhela's Blog)  को मेरी बातें जायज लगी और उन्होंने मेरे इस पत्र को पब्लिश करना का फैसला किया | मैं बहुत बहुत शुक्र गुजार हू अभिलाष का जिनके ब्लॉग के जरिये मैं काफी देशभक्तों तक अपनी बात पंहुचा सका |

AN OPEN LETTER TO ARVIND KEJRIWAL!!!

केजरीवाल सर, मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं है एक समय था जब आप मेरे मार्गदर्शक बन गए थे आपकी बातें और काम मुझे प्रभावित करते थे और मुझे ये स्वीकार करने में जरा भी झिझक नहीं होती कि भारत के करोडो लोगो कि तरह मैं भी देश कि तरक्की के लिए लाचार और बेबस महसूस कर रहा था दरअसल दोष भारत कि राजनीति का था इसलिए जब आपने एक नयी सोच और नए तरीके से राजनीति शुरू कि तो मैं भी उन करोडो लोगो कि तरह आप पर भरोसा कर बैठा शायद इसलिए क्युकी भारतीय स्वभाव से भावुक है | जब निर्भया की इज्ज़त बचाने के लिए पूरा देश एक साथ रास्ते पर आ गया था तो ये तो हमारे देश की इज्ज़त का सवाल था हमे समझ नहीं आया कि आप सही हो या गलत हमे बस ये दिखाई दे रहा था कि शायद देश प्रेम देश कि शरहद से देश कि राजनीति में आ गया है, खुशी बहुत हुई, उम्मीदें भी बहुत जाग गयी, लगा जैसे क्रांति आ गयी है, सिर्फ कुछ बुद्धिजीवियों और राजनीतिक पण्डितों को छोड़ कर किसी को अंदाजा ही नहीं हुआ कि आप करना क्या चाहते हो | लोगो की भावनाओ के सहारे खुद को आम इंसान बता कर आपने सबका दिल जीता और दिल्ली कि जनता ने आपको एक मौका दिया | शायद आपकी नीयत साफ़ थी लेकिन सिर्फ मुख्यमंत्री बन ने पहले तक, जब आपको ये समझ आया कि पूरा भारत परिवर्तन चाहता है और लोग भावनात्मक रूप से आपसे जुड़े हुए है (विधानसभा भासण के दौरान ) तो आपने इस बात का फायदा उठाना चाहा और सोचा कि जब भारतीय जनता मुझे मुख्यमंत्री बना सकती है तो यही सही मौका है कि मैं प्रधानमंत्री भी बन जाऊ और यही आपके जीवन कि सबसे बड़ी गलती थी, और यही आपकी नियत डगमगा गयी | आप भूल गए थे लोकतंत्र में बहुत ताकत है जो लोग आपको कुछ महीनो में आम इंसान से सिर्फ एक दिन में खास बना सकते है वही दुबारा आपकी औकात दिखने के लिए एक ही दिन में वापस आपको जमीन पर भी ला सकते है | आजादी के बाद देश धरनो और इंकलाब से नहीं चल रहा, लोग राजनीति के लिए जागरूक हो रहे है हम थक गए है नेताओं के वादों से, बहुत छोटी सी बात है जो हमे तक समझ आ गयी है कि अपना देश, दुनिया में मुह दिखने लायक तक नहीं रहा है और आप जैसे लोग, लोगो कि भावनाओ का फायदा उठा कर उस पर राजनीती कर रहे है | मैं शायद आज भी आपका शुभचिंतक रहता अगर आप दिल्ली कि कमान अच्छे से संभाल कर काम के दम पर वोट मांगते न कि भावनाओ से | बहुत सारी राजनीतियां देखी “जात-पात” ,”राज्य”, “हिंदू मुश्लिम” ,“गरीबी “ लेकिन पहली बार किसी ने “भावनाओ” की राजनीति की और काफी हद्द तक आप सफल रहे | अच्छा हुआ आपने इस्तीफा दिया क्युकी इस से हमे समझ आया कि “बच्चे” देश नहीं संभल सकते | देश में भावनाओ कि कमी नहीं है, कमी है सिर्फ “विकास” कि | एक चाय बेचने वाला क्या उसकी जगह अगर जूते सिलने वाला भी हमे विकास दिला सकता है तो शायद हम उसे ही वोट देते | उन चाय बेचने वाले ने आपको और हम सबको ये सिखा दिया कि सिर्फ IIT स्टूडेंट होने से आप सबका भविष्य नहीं बना सकते उसके लिए जरुरत है सही सोच, सही विज़न, सही अनुभव, और इन सबसे उपर एक सही नियत और सच्ची देशभक्ति कि | 

नरेन्द्र मोदी _/\_

बेबस भावुक भारतीय 
रितेश रंगारे

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